BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।

उत्तर -

मुगल शासक और यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियाँ

यूरोपीय देशों का भारत और अन्य पूर्वी देशों से व्यापारिक सम्बन्ध सदियों पुराना है मगर इसके स्वरूप में 16वीं - 17वीं शताब्दी में निर्णायक परिवर्तन आये। इस दौर से पूर्व ही 1498 ई० में यूरोप और भारत के बीच व्यापार के लिए एक प्रत्यक्ष समुद्री मार्ग की खोज हुई। इस काल में व्यापार में एशियाई व्यापारियों की जगह यूरोपीय व्यापारियों की प्रधानता स्थापित हुई। इस कारण व्यापार के माध्यम से अब भारत और यूरोप के बीच प्रत्यक्ष सम्पर्क बना। यह वह दौर था जब व्यापार के संचालन के लिए यूरोपीय शक्तियों द्वारा भारतीय तट पर स्थित सामरिक महत्व वाले क्षेत्रों पर अधिकार आरम्भ हुआ। इस काल में व्यापार में यूरोपीय व्यापारियों द्वारा अपना एकाधिकार बनाये रखने अथवा सुविधानुसार शर्तों पर व्यापार करने के प्रयास आरम्भ हुए। बाद में इन्हीं परिस्थितियों ने भारत में, ब्रिटिश सत्ता की स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार की।

भारत में पुर्तगालियों की सत्ता

व्यापार के इस नये रूप का विकास दो पृथक् चरणों में हुआ। पहले चरण में पुर्तगालियों ने व्यापार में पहल की। 1498 में वास्कोडिगामा की सफल यात्रा ने पुर्तगालियों को कालीकट में 1500 में अपनी पहली फैक्ट्री भारत में स्थापित करने में सहायता की। ये फैक्ट्रियाँ स्वायत्तशासी व्यापारिक केन्द्र थे जो एक देश के व्यापारियों द्वारा दूसरे देश में स्थापित किये जाते थे। इसके लिए अनुमति प्राप्त करना आवश्यक था। ऐसे केन्द्रों के प्रधान व्यापारिक अधिकारी फैक्टरी कहलाते थे। कालांतर में पुर्तगालियों ने कोचिन (1501), क्वीलॉन (1503), दीव (1509), गोवा (1510), मलक्का (1511), और होर्मुज (1515) तथा बंगाल तट (1517) पर फैक्ट्रियाँ स्थापित कर लीं। गोवा का नगर भारत में पुर्तगाली सत्ता का मुख्यालय बना और भारत में उनके द्वारा अधिकृत क्षेत्र एक पृथक् प्रशासनिक इकाई में परिवर्तित हो गये जो Estado da India के नाम से जानी गयी।

पुर्तगाली व्यापार और धर्म प्रचार दोनों ही उद्देश्यों से भारत में आये थे। उन्होंने किसी व्यापारिक कम्पनी का गठन नहीं किया बल्कि विभिन्न तटीय नगरों पर अधिकार कर अपना उपनिवेश Estado da India स्थापित किया।

मुगल शासकों का पुर्तगालियों के साथ सम्पर्क अकबर के समय में स्थापित हुआ, जब उसने धार्मिक प्रश्नों पर जानकारी के लिए पुर्तगाली पादरियों को अपने दरबार में आमंत्रित किया। जल्दी ही मुगल दरबार में पुर्तगालियों को प्रभावशाली स्थान प्राप्त हो गया। अकबर ने पादरियों को ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अनुमति भी प्रदान की। मगर दूसरी ओर भारतीय तट पर अकबर भी पुर्तगालियों की सैनिक कार्रवाईयों से चिंतित था और उसकी दकन नीति का एक उद्देश्य यह भी था कि पश्चिमी सागर तट पर नियन्त्रण स्थापित कर पुर्तगालियों के उत्पाद को समाप्त किया जाये। चूँकि दकन में मुगल सत्ता का विस्तार अकबर के शासन काल में अधूरा रहा, इसलिए पुर्तगालियों के विरुद्ध कार्रवाई का उसे अवसर प्राप्त नहीं हो पाया। शाहजहाँ और औरंगजेब के समय की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि भूमि पर मुगल सेना इतनी शक्तिशाली थी कि पुर्तगालियों या अन्य यूरोपीय शक्तियों को अनुशासित कर सके मगर उनकी नौसैनिक कमजोरी उन्हें पुर्तगालियों और अन्य यूरोपीय शक्तियों पर नियन्त्रण स्थापित करने से रोकती रही।

पूर्वी व्यापार का यह नया चरण स्वतन्त्र व्यापारियों द्वारा नहीं बल्कि संगठित संस्थाओं द्वारा विकसित हुआ। 1600 में इंगलिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी, और 1602 में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना इसी उद्देश्य से हुई थी। 1664 में फ्रांस की ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भी गठन हुआ। इनके साथ डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैण्ड की भी व्यापारिक कम्पनियाँ भारत में स्थापित हुईं मगर इनकी गतिविधियाँ सीमित और अल्पकालिक थीं। ऐसी कम्पनियों को इनके देश की सरकारों का समर्थन और संरक्षण प्राप्त था। इन्होंने भारत में अपने अनेक व्यापारिक प्रतिष्ठान संगठित किये।

डच व्यापारिक कम्पनी

डच (हॉलैण्डवासी) लोगों ने पहले दकन में अपना प्रभाव बनाया और मूसलीपट्टनम में 1606 में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की। उनकी रुचि मसालों के व्यापार में थी मगर जल्दी ही उन्होंने भारत में सूती वस्त्रों की प्राप्ति भी आरम्भ की ताकि इसके बदले में वे इंडोनेशिया से मसाले प्राप्त कर सकें। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी फैक्ट्रियों का विस्तार किया। इस क्रम में 1610 में कालीकट, 1620 में कैम्बे, 1621 में आगरा एवं सूरत, 1638 में पटना, 1650 में ढाका, 1635 में चिनसुरा में अपनी फैक्ट्रियाँ स्थापित कीं। 1662 में उन्होंने दक्षिण में गोलकुंडा के राज्य में भी दो फैक्ट्रियाँ स्थापित कीं।

ब्रिटिश कम्पनी

इंग्लैण्ड ने अपनी फैक्ट्री 1608 में सूरत में स्थापित की। इसके बाद 1609 में आगरा और भडोच, 1611 में मूसलीपट्टनम और 1639 में मद्रास में फैक्ट्रियाँ स्थापित की गयीं। 1668 में उन्हें पुर्तगाल से बम्बई प्राप्त हुआ जो शीघ्र ही भारत में उनका मुख्यालय बना (1687)। पूर्वी तट पर अंग्रेजों का आगमन विलम्ब से हुआ। 1633 में बालासोर, 1651 में हुगली और पटना में उनकी फैक्ट्रियाँ स्थापित हुईं। 1698 में उन्होंने गोविन्दपुर कालिकाता और सुतनाती की जमींदारी प्राप्त कर वहाँ अपनी किलेबंद बस्ती फोर्ट विलियम बसायी। 1700 में जॉब चारनक ने इसी स्थान पर कलकत्ता का शहर बसाया जो आगे चलकर भारत में ब्रिटिश सत्ता का केन्द्र बना।

फ्रांसीसी कम्पनी

फ्रांसिसियों ने अपनी पहली फैक्ट्री 1668 में सूरत में स्थापित की। उनकी गतिविधियाँ मुख्यतः दक्षिण भारत में ही रहीं। 1639 में मूसलीपट्टनम, 1673 में पाँडिचेरी, एवं चंद्रनगर, 1725 में माहे और 1739 में करइकल में भी उन्होंने अपनी फैक्ट्री स्थापित की। आगे चलकर पाँडिचेरी भारत में उनका मुख्यालय रहा।

मुगल शासन और व्यापारी कम्पनियाँ

सर्वप्रथम अंग्रजों ने मुगल दरबार से सम्पर्क स्थापित किया। उनका उद्देश्य मुगल साम्राज्य के क्षेत्रों में सुविधाजनक शर्तों पर व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करना था। 1608 में सूरत में उनकी फैक्ट्री को बन्द करने का आदेश गुजरात के सूबेदार ने दिया। 1609 में कैप्टेन हॉकिन्स जहाँगीर के दरबार में पहुँचा। जहाँगीर ने उसे उचित सम्मान दिया और खान की उपाधि प्रदान की। इसके साथ उसे मनसबदार के पद पर औपचारिक नियुक्ति भी की। हॉकिन्स के व्यक्तिगत सम्बन्ध जहाँगीर के साथ रहे। उसने व्यापार के लिए अनुमति प्राप्त करनी चाही परन्तु पुर्तगालियों के षड्यन्त्र के कारण वह असफल रहा। तत्पश्चात् 1615 में इंग्लैण्ड के शासक जेम्स I के प्रतिनिधि के रूप में सर टॉमस रो ने जहाँगीर के दरबार में प्रस्तुत होकर कम्पनी के लिए व्यापार की अनुमति प्राप्त की।

शाहजहाँ के समय में भी अंग्रेजों ने व्यापारिक सुविधाओं की प्राप्ति की कोशिशें जारी रखीं। शाहजहाँ ने एक अंग्रेज डॉक्टर, बूटन को 1647 में आगरा में चुंगीमुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। 1651 में बंगाल के तत्कालीन सूबेदार, शुजा ने अंग्रेजों को बंगाल में 3000 रूपये वार्षिक के भुगतान के बदले में चुंगीमुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। औरंगजेब के काल में बंगाल के सूबेदार, शाईस्ता खान ने भी यह सुविधा जारी रखी।

लगभग इसी समय, अंग्रेजों ने बंगाल में हुगली पर चढ़ाई कर दी। मगर औरंगजेब ने उन्हें पराजित कर बंगाल से निष्कासित कर दिया (1688)। अंग्रेजों ने इस बदली हुई परिस्थिति में क्षमा याचना कर ली और पुनः व्यापार आरम्भ किया। व्यापार सम्बन्धी रियायतों की वैध अनुमति लेने और अपनी बस्तियों में स्वशासी अधिकार प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों ने 1698 में विलियम नॉरिस के नेतृत्व में मुगल दरबार में अपना शिष्टमण्डल भेजा, यह प्रयास विफल रहा। 1714 में दुबारा एक शिष्टमण्डल जॉन सर्मन के नेतृत्व में भेजा गया जिसे 1717 में सम्राट फर्रूखसियर द्वारा बंगाल में चुंगीमुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की गयी। इसी सुविधा के दुरुपयोग ने अंग्रेजों और बंगाल के नवाब के बीच तनाव को जन्म दिया जिसके फलस्वरूप 1757 में प्लासी का युद्ध हुआ।

डच कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियाँ पश्चिम और दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर अधिक रहीं। मुगल साम्राज्य में व्यापार की अनुमति इन्हें भी जहाँगीर के समय में प्राप्त हुई थी। उन्हें बुरहानपुर से खम्बात और अहमदाबाद तक चुंगी देने से मुक्त कर दिया गया था। इन सुविधाओं का विस्तार शाहजहाँ के समय में हुआ। उसने 1635 में डच व्यापारियों को सूरत और बंगाल में व्यापार की अनुमति प्रदान की तथा 1638 में उन्हें शोरे के व्यापार में भी भाग लेने की इजाजत दी। 1689 में औरंगजेब ने गोलकुंडा पर विजय प्राप्त करने के बाद उस क्षेत्र में उन्हें प्राप्त सुविधाओं की पुष्टि कर दी। बाद के मुगल शासकों ने डच व्यापारियों के इन अधिकारों की मान्यता बनाये रखी।

कुछ समय बाद ही हॉलैण्ड एवं इंग्लैण्ड में आपसी प्रतिद्वन्द्विता आरम्भ हो गई। 1623 में अम्बोयना में डच लोगों ने अंग्रेजों की फैक्ट्री पर अधिकार कर कई व्यक्तियों का वध कर दिया और उन्हें मसालों के व्यापार से प्रायः निष्कासित कर दिया। तत्पश्चात् दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्रों में हस्तक्षेप न करने का तरीका अपनाया। फिर भी 1653-54 और 1672-74 में दोनों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई। तब अंग्रेजों ने भारत के व्यापार पर और डच लोगों ने मसालों के द्वीप के साथ व्यापार पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया। डच फैक्ट्रियाँ भारत में भी बनी रहीं परन्तु 17वीं शताब्दी के मध्य तक अंग्रेजों ने भारत में डच लोगों के प्रभाव को समाप्त कर दिया। इस प्रक्रिया का समापन 1759 में बेदारा के युद्ध में हुआ जिसमें डच पराजित हुए और भारत में उनका व्यापार नाम मात्र का रह गया।

यह वह दौर था जब, फ्रांसिसियों ने भी भारतीय व्यापार में प्रवेश किया। फ्रांसिसियों को मुगल साम्राज्य में व्यापार की अनुमति औरंगजेब ने 1667 के फरमान द्वारा प्रदान की जिसके फलस्वरूप उन्होंने सूरत में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। 1688 में औरंगजेब ने उन्हें बंगाल में भी व्यापार की अनुमति प्रदान की और चन्द्रनगर में बसने का अधिकार दिया। 18वीं शताब्दी के मध्य में कर्नाटक के क्षेत्र में प्रभाव बनाये रखने के लिए अंग्रेजों और फ्रांसिसियों ने तीन लड़ाइयाँ लड़ीं, जो आंग्ल-फ्रांसिसी प्रतिद्वन्द्विता से सम्बन्धित थी। इनमें इंग्लैण्ड की विजय हुई। इसके बाद अंग्रेजों ने फ्रांसिसियों को भी व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा में मात दे दी। 1757 में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब को प्लासी की लड़ाई में पराजित करके पूर्वी भारत तक अपनी सत्ता का विस्तार कर लिया। इस प्रकार भारत में अंग्रेजों की सत्ता की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया। 1764 में बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों की पुनः विजय और 1761 में पानीपत की लड़ाई में मराठों की हार ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना को पूरी तरह से सुनिश्चित कर दिया।

अंग्रेजों और मुगल शासकों के सम्बन्धों का एक नया चरण बक्सर की लड़ाई (1764) के बाद आरम्भ हुआ। युद्ध में मुगल सम्राट शाह आलम II की हार हुई और उसे 1765 में अंग्रेजों के साथ इलाहाबाद की सन्धि करनी पड़ी। इसके अन्तर्गत ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्रों पर दीवानी (लगान वसूली) का अधिकार प्राप्त हुआ। इसमें से 27 लाख रुपये वार्षिक वे मुगल सम्राट को भेंट करते थे। मुगल सम्राट अब अंग्रेजों का पेंशनभोक्ता बन कर रह गया। बाद में वारेन हेस्टिंग्स ने इस पेंशन को भी बन्द कर दिया। 1857 के विद्रोह के पश्चात् मुगल सत्ता की औपचारिकता भी समाप्त हो गई। इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासक की सत्ता स्थापित हो गई।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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